Netaji Subhas Chandra Bose Biography - More Than A Hero
आज हम उस योद्धा के बारेमे बात करनेवाले है जिन्होंने इस देश के लिए इतना बड़ा बलिदान दिया था लेकिन फिर भी उनमे जरा भी अभिमान नही था यहां तक की उन्होंने उसके लिए श्रेय भी नही लिया.
सुभाषचंद्र बोस का जन्म ओरिसा के कटक नाम के शहर में 23 जनवरी,1897 में एक समृद्ध परिवार में हुआ था.अगर सुभाषचंद्र बोस चाहते तो केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में मिली हुई Higher Education ओर ICS यानी इंडियन सिविल सर्विस में मिली 4th Rank की बदौलत कोई अच्छी सरकारी नोकरी करके एक आराम वाला जीवन जी सकते थे.लेकिन जिस व्यक्ति के आदर्श भगवद गीता से आये हो ओर जिनके दिल में स्वामी विवेकानंद और उनका "वषुदेव कुटुम्बकम" वाला ज्ञान बसता हो वो इंसान अपने देश ओर अपने देश के लोगो की दुर्दशा के ऊपर वो व्यक्ति ईसके तरह आरामदायक जीवन कैसे जी सकते थे.
3 अप्रैल, 1919 के दिन जब जलियावाला बाग हत्याकांड हुआ तो उस समय इसने सुभाषचंद्र बोस को ना सिर्फ अंदर तक जंजोड के रख दिया बल्कि यही वो वक्त था जब सुभाषचंद्र बोस ने "नेताजी सुभाषचंद्र बोस" बनने के रास्ते पर चलना शरू किया.23 अप्रैल 1921 को जब भारत को आजाद करने के मकसद से ICS(Indian Civil Service) वाले अपने सुनहरे भविष्य को पीछे छोड़कर नेताजी ब्रिटेन से भारत लोटे तो उस से पहले उन्होंने अपने भाई को पत्र लिखके ये कहा की अगर हमे अपने देश के लोगोको अपने देश के प्रति सन्मान ,प्यार ओर आग पैदा करनी है तो उसके लिए बलिदान ओर त्याग देश में रहकर देना पड़ेगा.
ब्रिटेन से लौटने के बाद अपनी काबिलियत ,जवाबदारी, प्रभाव ओर अपनी लीडरशिप के दम पे साल 1938 आते आते वैसे तो सुभाषचंद्र बोस भारत की उस समय की सबसे बड़ी ओर टेक्निकली एक मात्र पार्टी यानी कोंग्रेस के अध्यक्ष बन चुके थे ओर यहां अगर वो चाहते तो अंग्रेजो की हा में हा मिलाके खुदको महान बतानेवाले रास्ते पे चलते हुए अपनी औलादो उनकी औलादो के लिए भी जन्म जन्म तक फोकट में खाने की व्यवस्था कर सकते थे जैसी कुछ लोगोंने की भी थी आप समझ गए होंगे में किसकी बात कर रहा हु.
जिस वक्त नेताजी कोंग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बने उस वक्त भारत के अंदर महात्मा गांधी के बाद जो सबसे ज्यादा लोकप्रिय इंसान थे ओर जिन पर देश के लोग सबसे ज्यादा भरोशा करते थे वो थे नेताजी.लेकिन इसके बावजूद भी इस तरह के सुनहरे मोके को भुनाने की जगह भारत को पूर्ण स्वराज दिलाने के लिए मन्दिर की बाहर बैठे भिखारियो की तरह भीख में आजादी मिलने का इंतजार ना करते हुए नेताजी ने पूर्ण स्वाभिमान से अंग्रेजो से आजादी छीन ने का फैसला लिया.
यही वो वजह थी ओर यही वो नेताजी का स्वाभिमान ही था जिसकी वजह से नेताजी ओर गांधीजी के बीच में ना सिर्फ मतभेद हुए बल्कि गांधीजी ने नेताजी को कांग्रेस पार्टी छोड़ ने के लिए तक कह दिया.यही वजह थी जी Full Public सपॉर्ट होने के बावजूद भी नेताजी ने कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष की कुर्सी को ना सिर्फ लात मारदी बल्कि अंग्रेजो की फाइल निपटाने के मकसद से भारत की खुद की एक "इंडिपेंडेंट आर्मी" बनाने के लिए दूसरे विश्वयुद्धमें अंग्रेजो के साथ लड़ने की बजाय अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने का फैसला लिया ओर यहां से शरू होती है भारत को आजाद करने की वो लड़ाई जिसका क्रेडिट लिए आज कुछ लोग घूम रहे है.(चलो छोड़ो क्या कमेंट करना वैसे भी जब सुबह सूरज उगता है तब बल्ब भी की रोशनी फीकी पड़ जाती है.)
आजाद हिन्द फ़ौज की स्थापना नेताजी ने नही की थी.आजाद हिन्द फ़ौज की कमान नेताजी के हाथ में आयी 1943 में लेकिन आजाद हिन्द फ़ौज यानी Indian Netional Army की स्थापना इसके तकरीबन एक साल पहले 1942 में ही हो चुकी थी.उस वक्त जापान के राजा के साथ Collaboration करते हुए भारत के Nationalist लीडर्स ने आजाद हिन्द फ़ौज की स्थापना की बल्कि ये आर्मी अंग्रेजो के खिलाफ लड़ना भी शरू कर चुकी थी.लेकिन आजाद हिन्द फ़ौज ओर जापान की आर्मी की लीडरशिप के बीच विवाद चल रहे थे इस वजह से आजाद हिन्द फ़ौज को खास कामियाबी नही मिल पाई.
लेकिन साल 1943 में उस वक्त सब कुछ बदल गया जब आजाद हिन्द फ़ौज की कमान नेताजी के हाथो में आयी लेकिन इसके बारे में आगे चलकर बात करेंगे अभी हम कहानी को लेकर चलते है उस जगह जहा नेताजी ने गांधीजी के साथ चल रहे मतभेद की वजह से कोंग्रेस पार्टी को छोड़ा वैसे यहां आपको यह बात पता होनी चाहिए की भले ही उस वक्त नेताजी ओर गांधीजी के बीच मतभेद थे लेकिन फिर भी नेताजी ने कभी भी गांधीजी अपमान या गांधीजी की आलोचना नही की.आपको यह बात भी पता होनी चाहिए की सुभाषचंद्र बोस ने ही गांधीजी को "राष्ट्रपिता" का टाइटल दिया.
कोंग्रेस छोड़ ने के बाद सुभाषचंद्र बोस अपने पूर्ण स्वराज्य की तरफ आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र थे जिसके तहत वो उस वक्त दुनिया के पावरफुल देश जैसे की रूस ,इटली ,जर्मनी ओर जापान से भारत की भारत की Exile Goverment मतलब वो Goverment जो देश की है लेकिन देश के बाहर से शासन करती है जैसे आज तिब्बत की गवरमेंट आजकी तारीख में भारत से शासन करती है.(Headquarters Dharamshala, Himachal Pradesh, India)
उस वक्त सुभाषचंद्र बोस का ये प्लान था की भारत की Exile Goverment को इन तमाम देशो(रूस ,इटली ,जर्मनी ओर जापान) से मान्यता दिलवाते हुए भारत की खुद की एक इंडिपेंडेंट आर्मी बनाते हुए भारत में मौजूद ब्रिटिस गवरमेंट ओर उसकी आर्मी के ऊपर सीधा हमला करना ताकि भारत को आजाद कराया जाए.लेकिन इस वाले प्लान में सुभाषचंद्र बोस के सामने सबसे बड़ी समस्या थी खुद सुभाषचंद्र बोस की Location क्योकि वो तो कलकत्ता में थे ओर अगर इस तरह के प्लान को अमल में लाना है तो इन सभी देशो के लीडर्स से मिलना पड़ेगा.यह तभी संभव हो सकता था जब सुभाषचंद्र बोस भारत को छोड़कर इन सब देशो में जाए.ब्रिटिश गवरमेंट ने नेताजी के ऊपर चौबीस घंटे ओर सातो दिन सुभाषचंद्र बोस के घर के आसपास लगातार पहरा लगा रखा था क्योकि उस वक्त ब्रिटिस गवरमेंट को इस बात का शक था की सुभाषचंद्र बोस अब कोई बड़ा कदम उठा सकते है.
इसके बावजूद भी सुभाषचंद्र बोस ना सिर्फ बंगाल से बाहर निकलने में सफल हुए बल्कि इसके बाद वो काबुल के रास्ते जर्मनी पहोचे.मदद के लिए जर्मनी ओर हिटलर सुभाषचंद्र बोस की पहेली पसंद कभी भी नही थे क्योकि मदद के लिए वो भारत से रूस के लिए निकले थे लेकिन साल 1942 में यानी की उस वक्त जब रूस दूसरे विश्वयुद्ध में एकदम न्यूट्रल था क्योकि रूस के राष्ट्रपति स्टालिन हिटलर के साथ में "Non-Aggression Pact" साइन चुके थे ओर उसे ये भी पता था की आज नही तो कल हिटलर रूस के ऊपर आक्रमण करेगा इसीलिए स्टालिन ब्रिटेन के साथ भी किसी तरह का पन्गा नही चाहते थे क्योकि अगर हिटलर रूस के ऊपर आक्रमण करता है तो सेकंड फ्रंट पर तो ब्रिटेन, फ्रांस ओर अमेरिका ही लड़ेंगे ही रूस के लिए.
तो यही वजह है की सुभाषचंद्र बोस ने काबुल पहोचने के बाद जब रूस की एम्बेसी में जा कर मदद मांगी तो रूस ने उनकी मदद करना तो दूर बल्कि रूस ने सुभाषचंद्र बोस को उनके ओरिजनल नाम पर रूस से होकर जर्मनी जाने के लिए ट्रांजिट वीसा देने तक से मना कर दिया.इसीलिए सुभाषचंद्र बोस को उस वक्त इटली के पासपोर्ट की मदद से रूस होते हुए जर्मनी जाना पड़ा था.सुभाषचंद्र बोस मदद के लिए हिटलर के पास पहोचे.दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका फ्रांस ओर तमाम पश्चिमी देश जब ब्रिटेन के साथ मिलकर लड़ रहे थे तो ऐसे में वो तो भारत की मदद नही करते.इसीलिए सुभाषचंद्र बोस का जर्मनी जाना लॉजिकल भी था ओर सही भी था.
जो कुछ भी हो लेकिन क्योकि अब सुभाषचंद्र बोस जर्मनी पहोच चुके थे तो अब समय आ चुका था की वो हिटलर से मीले ओर भारत को आजाद करने में उससे मदद भी मागे लेकिन सुभाषचंद्र बोस के जर्मनी पहोचने के तकरीबन एक साल बाद तक तो हिटलर सुभाषचंद्र बोस से मिले तक नही ओर जब मिले तो हिटलर ने यह कहते हुए मदद करने से मना कर दिया की एक तो भारत जर्मनी से इतना दूर है तो जर्मन आर्मी वहां जाकर लड़ेगी कैसे ओर दूसरा हिटलर के मुताबिक़ भारत बहोत ज्यादा डाइवर्स, डीवाईडेड ओर बेकवर्ड सोसाइटी है जिसे जरूरी था की कोई न कोई मैनेज करे.ये बात हिटलर ने खुद सुभाषचंद्र बोस को भारत की मदद करने से मना करते हुए उनके मुह पर बोली थी.
लेकिन भारत को लेकर अपने विचारो को हिटलर ने जब अपनी आत्मकथा में लिखा तो उसमे उसने ये कहा की भारत में जो ब्रिटेन का कब्जा था वो अच्छा था क्योकि उसके मुताबिक यहूदी, हिन्दू ओर इन तमाम लोगो को भेड़ बकरियो की तरह ट्रीट करना चाहिए जो ब्रिटन Already कर रहा था.
हिटलर का भारत की मदद करने का कोई मकसद नही था लेकिन हिटलर सुभाषचंद्र बोस से बहोत ज्यादा प्रभावित थे इस वजह से हिटलर ने सुभाषचंद्र बोस को मदद के नाम पर सिर्फ जर्मनी से जापान जाने के लिए सबमरीन में जगह दी जिसकी मदद से सुभाषचंद्र बोस जापान में टोकियो तक पहोचे ओर वहां उन्होंने घोषणा की वो अब भारत में ब्रिटिश सरकार के ऊपर हमला करेंगे ओर भारत को ब्रिटिश साशन से आजाद कराने की कोसिस करंगे जिसके लिए उनको आर्मी की जरूरत होगी जो की उनके पास अब थी "आजाद हिन्द फ़ौज" के रूप में जिसे बनाया गया था 1 साल पहले 1942 में जापान के Collaboration करके.
अब सुभाषचंद्र बोस जापान पहोचने के बाद "आजाद हिन्द फ़ौज" की कमान ओर सुप्रीम कमांडर की पोजीसन ना सिर्फ सुभाषचंद्र बोस के हाथ में आयी बल्कि जापान ने ब्रिटिश इंडियन आर्मी के उन तमाम भारतीय सैनिको को भी सुभाषचंद्र बोस को सोप दिया जिसे उसने युद्ध के दौरान कैप्चर किया था,
इतना ही नही सुभाषचंद्र बोस ने इसी दौरान "आजाद हिन्द गवरमेंट" भी बनाई.जिसका ना सिर्फ Proper Structure था बल्कि विदेश मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय ओर कानून मंत्रालय के साथ साथ खुद की Currency ओर Bank, Hospitals ओर अदालत System भी शामिल था.मतलब सुभाषचंद्र बोस हर चीज सोच समजकर प्लान कर चुके थे ताकि जैसे ही भारत आजाद हो.उस वक्त हमारे पास पूरा की पूरा सिस्टम पहले से ही तैयार हो.
अब सुभाषचंद्र बोस के पास "आजाद हिन्द" के रूप में न की खुदकी आर्मी थी बल्कि उस आर्मी में भारत के तमाम लोग थे जो भारत की आजादी ओर सुभाषचंद्र बोस के लिए अपनी जान भी दे भी सकते थे ओर जान ले भी सकते थे.अब वक्त आ चुका था सुभाषचंद्र बोस पूरी तैयारी के साथ ब्रिटेन के ऊपर भारत को आजाद कराने के मकसद से पहला हमला करे.
19 मार्च 1944 का वो दिन इतिहास में अमर हो गया भारत की खुद की इंडिपेंडेंट आर्मी सुभाषचंद्र बोस की कमान में भारत को आजाद करने की मकसद से बर्मा से होते हुए ना की भारत में घुसी बल्कि आजादी के लिए सुभाषचंद्र बोस की इस "आजाद हिन्द " ने इंफाल ओर कोहिमा जैसे इलाको को ब्रिटेन से आजाद करते हुए अपने कब्जे में ले लिया.
वैसे आप को यहां ये बात पता होना चाहिए की उस वक्त आजाद हिन्द फ़ौज ने भारत में घुस ने से पहले न की सिर्फ इस देश की धरती को ना सिर्फ नमन किया बल्कि देश की मिट्टी को अपने माथे पर भी लगाया.
साल 1945 में जब जापान ओर जर्मनी दूसरे विश्वयुद्ध में आत्मसमर्पण कर चुके थे इस वजह से अच्छी-खासी बढ़त ओर जीत मिलने के बावजूत भी हथियार ओर मदद की Backing खत्म होने की वजह से ना सिर्फ अपनी पोजीसन छोड़नी पड़ी बल्कि अगस्त 1945 आते आते ब्रिटिस आर्मी ने आजाद हिन्द फ़ौज के 16 हजार सैनिको को बंदी भी बना लिया.इतना ही नही यही वो महीना ओर यही वो साल था जब सुभाषचंद्र बोस दूसरे विश्वयुद्ध के इस पूरे घटनाक्रम के बाद ताइवान के एक शहर में आगे की रणनीति बनाने के लिए हवाई जहाज से निकले तब वहां ना सिर्फ उनका विमान क्रेश हो गया बल्कि उस दुर्घटना में नेताजी का निधन भी हो गया.
सुभाषचंद्र बोस ओर आजाद हिन्द फ़ौज के सैनिको पर अंग्रेजो का किया गया वह घटिया व्यवहार ही था जिसने उस वक्त इस पूरे के पूरे देश को यानी की भारत को न की सिर्फ यूनाइट किया बल्कि इसकी वजह से ब्रिटिस इंडियन आर्मी ओर नेवी के अंदर भी ब्रिटिस सरकार के खिलाफ बगावत खड़ी हो गई.
ब्रिटिन के पूर्व प्रधानमंत्री Clement Attlee जब 1956 में भारत आये तब बंगाल के राज्यपाल ने उनसे पूछा की "भारत की आजादी में गांधीजी की क्या भूमिका थी उनका क्या रोल था ?" तो इसके जवाब में Clement Attlee कहते है की "Minimum यानी न्यूनतम".
तो फिर बंगाल के राज्यपाल ने उनको पूछा "तो की क्या वजह थी की ब्रिटिश गवरमेंट को भारत छोड़कर जाना पड़ा ?" तो जवाब में Clement Attlee कहते है की "यह आजाद हिन्द फ़ौज ओर उसके बाद भारत में खड़ी हुई यही बगावत थी जिसकी वजह से ब्रिटिस गवरमेंट ने जल्दी से जल्दी ना सिर्फ भारत से निकलने का फैसला किया बल्कि 15 अगस्त 1947 को आजादी भी मिली"
यानी भारत मे ब्रिटिश इंडियन आर्मी, ब्रिटिश इंडियन नेवी ओर देश मे अलग अलग जगह जो विद्रोह हुआ था यही वजह थी कि अंग्रेजों को भारत छोडकर जाना पड़ा था ना कि किसी के वाहियात अहिंसा आंदोलन से. कुछ भिखारी आज भी इसका श्रेय लिए घूम रहे है. उनको शर्म आनी चाहिए.
यह विद्रोह अंग्रेजो को 1857 के विद्रोह की याद दिला रहा था.यही डर था कि अंग्रेज 15 अगस्त, 1947 के दिन अपने पालतू लोगो को सत्ता सोपकर चले गए.
लेंकिन आज यह इतिहास हमे स्कूलों और कॉलेजों में नही पढ़ाया जाता Thanks To Nehru/Gandhi Family
अस्तु |