Netaji Subhas Chandra Bose Biography - More Than A Hero #2
Continue From Part-1 :) इसके बावजूद भी सुभाषचंद्र बोस ना सिर्फ बंगाल से बाहर निकलने में सफल हुए बल्कि इसके बाद वो काबुल के रास्ते जर्मनी पहोचे.मदद के लिए जर्मनी ओर हिटलर सुभाषचंद्र बोस की पहेली पसंद कभी भी नही थे क्योकि मदद के लिए वो भारत से रूस के लिए निकले थे लेकिन साल 1942 में यानी की उस वक्त जब रूस दूसरे विश्वयुद्ध में एकदम न्यूट्रल था क्योकि रूस के राष्ट्रपति स्टालिन हिटलर के साथ में "Non-Aggression Pact" साइन चुके थे ओर उसे ये भी पता था की आज नही तो कल हिटलर रूस के ऊपर आक्रमण करेगा इसीलिए स्टालिन ब्रिटेन के साथ भी किसी तरह का पन्गा नही चाहते थे क्योकि अगर हिटलर रूस के ऊपर आक्रमण करता है तो सेकंड फ्रंट पर तो ब्रिटेन, फ्रांस ओर अमेरिका ही लड़ेंगे ही रूस के लिए.
तो यही वजह है की सुभाषचंद्र बोस ने काबुल पहोचने के बाद जब रूस की एम्बेसी में जा कर मदद मांगी तो रूस ने उनकी मदद करना तो दूर बल्कि रूस ने सुभाषचंद्र बोस को उनके ओरिजनल नाम पर रूस से होकर जर्मनी जाने के लिए ट्रांजिट वीसा देने तक से मना कर दिया.इसीलिए सुभाषचंद्र बोस को उस वक्त इटली के पासपोर्ट की मदद से रूस होते हुए जर्मनी जाना पड़ा था.सुभाषचंद्र बोस मदद के लिए हिटलर के पास पहोचे.दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका फ्रांस ओर तमाम पश्चिमी देश जब ब्रिटेन के साथ मिलकर लड़ रहे थे तो ऐसे में वो तो भारत की मदद नही करते.इसीलिए सुभाषचंद्र बोस का जर्मनी जाना लॉजिकल भी था ओर सही भी था.
जो कुछ भी हो लेकिन क्योकि अब सुभाषचंद्र बोस जर्मनी पहोच चुके थे तो अब समय आ चुका था की वो हिटलर से मीले ओर भारत को आजाद करने में उससे मदद भी मागे लेकिन सुभाषचंद्र बोस के जर्मनी पहोचने के तकरीबन एक साल बाद तक तो हिटलर सुभाषचंद्र बोस से मिले तक नही ओर जब मिले तो हिटलर ने यह कहते हुए मदद करने से मना कर दिया की एक तो भारत जर्मनी से इतना दूर है तो जर्मन आर्मी वहां जाकर लड़ेगी कैसे ओर दूसरा हिटलर के मुताबिक़ भारत बहोत ज्यादा डाइवर्स, डीवाईडेड ओर बेकवर्ड सोसाइटी है जिसे जरूरी था की कोई न कोई मैनेज करे.ये बात हिटलर ने खुद सुभाषचंद्र बोस को भारत की मदद करने से मना करते हुए उनके मुह पर बोली थी.
लेकिन भारत को लेकर अपने विचारो को हिटलर ने जब अपनी आत्मकथा में लिखा तो उसमे उसने ये कहा की भारत में जो ब्रिटेन का कब्जा था वो अच्छा था क्योकि उसके मुताबिक यहूदी, हिन्दू ओर इन तमाम लोगो को भेड़ बकरियो की तरह ट्रीट करना चाहिए जो ब्रिटन Already कर रहा था.
हिटलर का भारत की मदद करने का कोई मकसद नही था लेकिन हिटलर सुभाषचंद्र बोस से बहोत ज्यादा प्रभावित थे इस वजह से हिटलर ने सुभाषचंद्र बोस को मदद के नाम पर सिर्फ जर्मनी से जापान जाने के लिए सबमरीन में जगह दी जिसकी मदद से सुभाषचंद्र बोस जापान में टोकियो तक पहोचे ओर वहां उन्होंने घोषणा की वो अब भारत में ब्रिटिश सरकार के ऊपर हमला करेंगे ओर भारत को ब्रिटिश साशन से आजाद कराने की कोसिस करंगे जिसके लिए उनको आर्मी की जरूरत होगी जो की उनके पास अब थी "आजाद हिन्द फ़ौज" के रूप में जिसे बनाया गया था 1 साल पहले 1942 में जापान के Collaboration करके.
अब सुभाषचंद्र बोस जापान पहोचने के बाद "आजाद हिन्द फ़ौज" की कमान ओर सुप्रीम कमांडर की पोजीसन ना सिर्फ सुभाषचंद्र बोस के हाथ में आयी बल्कि जापान ने ब्रिटिश इंडियन आर्मी के उन तमाम भारतीय सैनिको को भी सुभाषचंद्र बोस को सोप दिया जिसे उसने युद्ध के दौरान कैप्चर किया था,
इतना ही नही सुभाषचंद्र बोस ने इसी दौरान "आजाद हिन्द गवरमेंट" भी बनाई.जिसका ना सिर्फ Proper Structure था बल्कि विदेश मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय ओर कानून मंत्रालय के साथ साथ खुद की Currency ओर Bank, Hospitals ओर अदालत System भी शामिल था.मतलब सुभाषचंद्र बोस हर चीज सोच समजकर प्लान कर चुके थे ताकि जैसे ही भारत आजाद हो.उस वक्त हमारे पास पूरा की पूरा सिस्टम पहले से ही तैयार हो.
अब सुभाषचंद्र बोस के पास "आजाद हिन्द" के रूप में न की खुदकी आर्मी थी बल्कि उस आर्मी में भारत के तमाम लोग थे जो भारत की आजादी ओर सुभाषचंद्र बोस के लिए अपनी जान भी दे भी सकते थे ओर जान ले भी सकते थे.अब वक्त आ चुका था सुभाषचंद्र बोस पूरी तैयारी के साथ ब्रिटेन के ऊपर भारत को आजाद कराने के मकसद से पहला हमला करे.
19 मार्च 1944 का वो दिन इतिहास में अमर हो गया भारत की खुद की इंडिपेंडेंट आर्मी सुभाषचंद्र बोस की कमान में भारत को आजाद करने की मकसद से बर्मा से होते हुए ना की भारत में घुसी बल्कि आजादी के लिए सुभाषचंद्र बोस की इस "आजाद हिन्द " ने इंफाल ओर कोहिमा जैसे इलाको को ब्रिटेन से आजाद करते हुए अपने कब्जे में ले लिया.
वैसे आप को यहां ये बात पता होना चाहिए की उस वक्त आजाद हिन्द फ़ौज ने भारत में घुस ने से पहले न की सिर्फ इस देश की धरती को ना सिर्फ नमन किया बल्कि देश की मिट्टी को अपने माथे पर भी लगाया.
साल 1945 में जब जापान ओर जर्मनी दूसरे विश्वयुद्ध में आत्मसमर्पण कर चुके थे इस वजह से अच्छी-खासी बढ़त ओर जीत मिलने के बावजूत भी हथियार ओर मदद की Backing खत्म होने की वजह से ना सिर्फ अपनी पोजीसन छोड़नी पड़ी बल्कि अगस्त 1945 आते आते ब्रिटिस आर्मी ने आजाद हिन्द फ़ौज के 16 हजार सैनिको को बंदी भी बना लिया.इतना ही नही यही वो महीना ओर यही वो साल था जब सुभाषचंद्र बोस दूसरे विश्वयुद्ध के इस पूरे घटनाक्रम के बाद ताइवान के एक शहर में आगे की रणनीति बनाने के लिए हवाई जहाज से निकले तब वहां ना सिर्फ उनका विमान क्रेश हो गया बल्कि उस दुर्घटना में नेताजी का निधन भी हो गया.
सुभाषचंद्र बोस ओर आजाद हिन्द फ़ौज के सैनिको पर अंग्रेजो का किया गया वह घटिया व्यवहार ही था जिसने उस वक्त इस पूरे के पूरे देश को यानी की भारत को न की सिर्फ यूनाइट किया बल्कि इसकी वजह से ब्रिटिस इंडियन आर्मी ओर नेवी के अंदर भी ब्रिटिस सरकार के खिलाफ बगावत खड़ी हो गई.
ब्रिटिन के पूर्व प्रधानमंत्री Clement Attlee जब 1956 में भारत आये तब बंगाल के राज्यपाल ने उनसे पूछा की "भारत की आजादी में गांधीजी की क्या भूमिका थी उनका क्या रोल था ?" तो इसके जवाब में Clement Attlee कहते है की "Minimum यानी न्यूनतम".
तो फिर बंगाल के राज्यपाल ने उनको पूछा "तो की क्या वजह थी की ब्रिटिश गवरमेंट को भारत छोड़कर जाना पड़ा ?" तो जवाब में Clement Attlee कहते है की "यह आजाद हिन्द फ़ौज ओर उसके बाद भारत में खड़ी हुई यही बगावत थी जिसकी वजह से ब्रिटिस गवरमेंट ने जल्दी से जल्दी ना सिर्फ भारत से निकलने का फैसला किया बल्कि 15 अगस्त 1947 को आजादी भी मिली"
यानी भारत मे ब्रिटिश इंडियन आर्मी, ब्रिटिश इंडियन नेवी ओर देश मे अलग अलग जगह जो विद्रोह हुआ था यही वजह थी कि अंग्रेजों को भारत छोडकर जाना पड़ा था ना कि किसी के वाहियात अहिंसा आंदोलन से. कुछ भिखारी आज भी इसका श्रेय लिए घूम रहे है. उनको शर्म आनी चाहिए.
यह विद्रोह अंग्रेजो को 1857 के विद्रोह की याद दिला रहा था.यही डर था कि अंग्रेज 15 अगस्त, 1947 के दिन अपने पालतू लोगो को सत्ता सोपकर चले गए.
लेंकिन आज यह इतिहास हमे स्कूलों और कॉलेजों में नही पढ़ाया जाता Thanks To Nehru/Gandhi Family
अस्तु |